Guru Ravidas Jayanti 2022: सिख धर्म के लिए क्यों इतने खास हैं संत रविदास? 16 February 2022

वाराणसी में जन्मे संत रविदास के पिता जूते बनाने का काम करते थे. अपनी आध्यात्मिक यात्रा में सफल होने के बाद भी उन्होंने अपने पारंपरिक रोजगार को नहीं छोड़ा. इससे जुड़ी एक कहानी भी है. एक बार उनसे उनके एक साथी ने गंगा स्नान के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि उन्हें उसी दिन एक जोड़ी जूते अपने एक ग्राहक को बनाकर देने हैं. इसपर जब उनके साथी ने जोर दिया तो उन्होंने उनसे कहा-

“मन चंगा तो कठौती में गंगा… “

यह मुहावरा आज भी प्रचलित है. अलग-अलग धर्मों और जातियों में लोगों का बांटा जाना भारत के लिए कोई नई बात नहीं है. लेकिन वक्त-वक्त पर लोगों को आपस में प्रेम और सौहार्द बनाए रखना लोगों को ऐसे ही संतों ने सिखाया है. संत रविदास ऐसे संतों में प्रमुख रहे हैं. 15वीं शताब्दी में चला भक्ति आंदोलन एक बड़ा आध्यात्मिक आंदोलन था. यह आंदोलन पूरे उत्तर भारत में बहुत प्रचलित हुआ था.

संत रविदास इस आंदोलन में भक्तिमार्गी शाखा के प्रमुख संत थे और मानते थे कि ईश्वर को पाने का एक ही रास्ता है, ‘भक्ति.’ हिंदू धर्म के अलावा सिख धर्म के अनुयायी भी संत रविदास के प्रति श्रद्धा रखते हैं. मध्यकाल की प्रसिद्ध संत मीराबाई भी उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरू माना करती थीं.

संत रविदास ने अपनी कविताओं के माध्यम से जातिप्रथा का विरोध किया. वे एक मानवतावादी थे. उन्होंने ब्राह्मणवादी व्यवस्था को स्वीकार करने से इंकार किया और अपनी कविताओं में बेगमपुरा नाम के एक ऐसे समाज की स्थापना की जो इस तरह के किसी भी वरीयता क्रम से मुक्त था.

संत रविदास समानतापूर्ण समाज के समर्थक थे. उनकी कविताओं से भी यही सीख मिलती है. उनकी कविताओं में दी गई सीखें, पंजाब के SC समुदाय के लिए पवित्र सीखें मानी जाने लगी थीं.

संत रविदास केवल एक ईश्वर में ही विश्वास करते थे. और उनकी प्रार्थनाएं भी बस उसी एक ईश्वर को संबोधित होती थीं. दरअसल उनकी 41 कविताओं को सिखों के पवित्र धर्मग्रंथ आदिग्रंथ या गुरुग्रंथ साहिब में भी शामिल किया गया है. इन कविताओं को सिखों के पांचवे गुरु गुरु अर्जुन देव ने शामिल किया था.

2009 में वियना में रामनंद दास जी हत्या कर दी गई थी, जिससे सिखों के साथ गुरु रविदास समर्थकों के रिश्तों में तल्खी आ गई थी. इसके बाद संत रविदास के नाम पर प्रमुखता से एक धर्म की स्थापना की गई थी.

संत रविदास का कर्मों में विश्वास था. वे यह भी मानते थे कि पवित्र ग्रंथों को पढ़ना भी सभी का जन्मसिद्ध अधिकार है.

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