माघ पूर्णिमा

Magh Purnima

हर माह के अंत में आने वाली पूर्णिमा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. कहते हैं कि पूर्णिमा तिथि देवताओं की तिथि होती है. माघ माह में आने वाली पूर्णिमा को माघी पूर्णिमा  के नाम से जाना जाता है. इसका विशेष महत्व होता है. धार्मिक मान्यता है कि इस पूरे माह में देवी-देवता मनुष्य रूप में धरती पर मौजूद रहते हैं.

माघ पूर्णिमा  के दिन गंगा स्नान, दान, पुण्य आदि का विशेष महत्व है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन श्री हरि भगवान विष्णु (Lord Vishnu) गंगा नदी में विद्यमान होते हैं. इसलिए माघ पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान को मोक्षदायी माना गया है. बता दें कि पूर्णिमा के व्रत (Purnima Vrat) को शास्त्रों में श्रेष्ठ व्रत माना गया है. इस दिन पूजन के दौरान व्रत कथा (Purnima Vrat Katha) करने से भगवान श्री हरि (Lord Shir Hari) की कृपा प्राप्त होते हैं. आइए जानें माघी पूर्णिमा व्रत कथा.

माघ पूर्णिमा व्रत कथा (Magh Purnima Vrat Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार कांतिका नगर में धनेश्वर नाम का ब्राह्मण रहता था. भिक्षा मांगकर ही वे अपना निर्वाह करता था. ब्राह्मण और उसकी पत्नी के कोई संतान न थी. एक दिन नगर में भिक्षा मांगने के दौरान लोगों ने ब्राह्मण की पत्नी को बांझ कहकर ताने मारे. साथ ही, उसे  भिक्षा देने से भी इनकार कर दिया. इससे ब्राह्मण की पत्नी बहुत दुखी हो गई. इस घटना के बाद उसे किसी ने 16 दिन तक मां काली की पूजा करने को कहा.

ब्राह्मण दंपत्ति ने 16 दिनों तक नियमों का पालन करते हुए पूजन किया. दंपत्ति की पूजा से प्रसन्न होकर 16वें दिन मां काली प्रकट हुईं और उसे गर्भवती होने का वरदान दिया. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि पूर्णिमा के दिन एक दीपक जलाना और धीरे-धीरे हर पूर्णिमा पर एक-एक दीपक बढ़ा देना. ऐसा कम से कम 32 संख्या तक जलाएं और दोनों पति-पत्नी मिलकर पूर्णिमा का व्रत रखें.

मां काली के कहे अनुसार ब्राह्मण दंपति ने पूर्णिमा को दीपक जलाने शुरू कर दिए और व्रत रखे. ऐसा करने से ब्राह्मणी गर्भवती हो गई. कुछ समय बाद ब्राह्मणी ने एक पुत्र को जन्म दिया. इस पुत्र का नाम देवदास रखा. लेकिन देवदास अल्पायु था. देवदास के बड़े होने पर उसे मामा के साथ पढ़ने के लिए काशी भेजा दिया.

काशी में एक दुर्घटना में घटी जिस कारण धोखे से उसका विवाह हो गया. कुछ समय बाद काल उसके प्राण लेने आया, लेकिन उस दिन पूर्णिमा थी और ब्राह्मण दंपति ने उस दिन पुत्र के लिए व्रत रखा था. इस कारण काल चाहकर भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सका. इससे उसके पुत्र को जीवनदान मिल गया. इस ​तरह पूर्णिमा के दिन व्रत करने से सभी संकटों से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

माघ पूर्णिमा पर क्या ना करें 

-माघ पूर्णिमा के दिन किसी भी प्रकार का तामसिक भोजन ना करें. इसके अलावा इस दिन लहसुन, प्याज का सेवन भी निषेध माना गया है.

-पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का प्रभाव काफी तेज रहता है. जिस कारण इंसान ज्यादा उत्तेजित और भावुक होता है. ऐसे में इस दिन क्रोध करने से बचना चाहिए.

-शास्त्रों के मुताबिक इस दिन किसी की भी निंदा नहीं करनी चाहिए. साथ ही किसी भी व्यक्ति को अपशब्द ना कहें, क्योंकि ऐसा करने से दोष लगता है. साथ ही मां लक्ष्मी रूठकर हमेशा के लिए घर से चली जाती हैं.

-पूर्णिमा के दिन घर में किसी प्रकार का झगड़ा और अपसी कलह नहीं करना चाहिए. ऐसा करने से घर में दरिद्रता का वास होने लगता है.

-माघ पूर्णिमा के दिन भूलकर भी शराब का सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस दिन शराब का सेवन करने से मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है. साथ ही भविष्य पर भी दुष्परिणाम हो सकते हैं.

-माघ पूर्णिमा धन की देवी मां लक्ष्मी को समर्पित है. ऐसे में इस दिन घर की साफ-सफाई रखने से घर में मां लक्ष्मी का आगमन होता है.

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