अध्याय – 1
- ऋषि मधुच्छन्दा विश्वामित्र: –
इन्होंने अग्नि वायु, इन्द्र वरुण, अश्विनौ विश्वदेवा, सरस्वती, मरुद, इन सभी के प्रति अपनी श्रध्दा व्यक्त करते हुए सभी सूक्तों को सर्मपित किया है।
- ऋषि जेता मधुच्छन्दस: –
इन्होंने भी इसी प्रकार से देव इन्द्र की वंदना करते हुए सूक्तों को लिखा है।
3. मेधातिथि; काण्व: –
इन्होंने भी अग्नि को श्रेष्ठ मानते हुए इला, सरस्वती और मही तीनों देवियों को सुख देने वाली बताया है। अग्नि और सूर्य को भी अनुष्ठानों में यजन कर्म के लिए पुकारते हैं। अश्विनी कुमारों इन्द्र, वरुण, अग्नि, मरुतःऋषभ, पवन इन सभी की अपने सूक्त छंदों, द्वारा वंदना की है।
- देवता ब्रह्मणस्पतिः–
प्रभुतय इसमें कहा है कि मुझे सोम निचोडने वाले को उशिज के पुत्र कक्षीवान के तुल्य विख्याती प्रदान करो।
- ऋषि-शुनः शेपः–
इन्होंने भी अदिति पुत्र वरुण का आह्वान किया है।और अग्नि, पवन, इन्द्र, उषा, अश्विनी कुमारों सभी के लिए वंदना करते हुए अपनी श्रद्धा को व्यक्त किया है।
- ऋषि हिरण्यस्तूप: अंगिरसः–
इन्होंने भी कहा है कि हे अग्ने! तुम अंगिराओं में सर्वश्रेष्ठ, और प्रथम हो। तुमने मनु और पुरखा सम्राट को स्वर्ग के संबंन्ध में बताया था । जब तुम मातृ-भूत दो काष्ठों में रचित होते हो तब तुम्हें पूर्व की तरफ ले जाते हैं । इसी प्रकार इंद्र, अश्विन, अग्नि, सभी की वंदना की है। और उनसे सुख, संमृद्धि की कामना करते हुऐ सूक्तों को लिखा है।
- ऋषि-कण्वो घोरः-
इन्होंने कहा है कि हे कण्वगोत्र वाले ऋषियों! क्रीडा- परिपूर्ण अहिंसित मरुदगण रथ पर सुशोभित है। उनके लिए वंदना गान करो। मरुदगण चलते हैं; तब मार्ग मे एक-दूसरे से बात करते हैं उनकी उस ध्वनी को कौन सुनता है? हे मरुतों गति वाले वाहन से जल्द पधारो यह कण्ववंशी और अन्य विद्वान संगठित हैं उनके द्वारा खुशी ग्रहण करो । इसी प्रकार इन्होंने भी देवता मरुत ब्रह्मणस्पति, आदित्य, पुषा, रुद्र, सभी की वंदना की है।
- ऋुषि-प्रस्कण्व: काण्वः–
इन्होंने अग्नि से अर्चना यज्ञ करते हुए कहा है, हे अग्ने! वसु, रुद्र और आदित्यों का इस अनुष्ठान में पूजन करो। अनुष्ठान में परिपूर्ण घी, अन्नवर्धक, मनु-पुत्र देवों का अर्चन करो। हे अग्ने! देवगण मेधावी हविदाता के सुख की अभिलाषा करने वाले हैं । तुम रोहित नामक अश्ववाले हो । हे पुज्य (उन तैंतीस देवों को यहाँ लाओ।) जिस प्रकार आपने प्रिय, मेघा, विरुप और अंगिरा की पुकार तुमने सुनी थी, वैसे ही अब प्रस्कण्व की पुकार को सुनो।
- यहाँ पर साफ तौर से बताया है कि हमारे सिर्फ तैंतीस देवी-देवता हैं न की तैंतीस करोड।
- ऋषि-सव्य अंगिरस: –
इन्होंने अपने सभी छंदों को देवता इंद्र को समर्पित किया है उन्हीं की वीरताओं का वर्णन किया है।
10. ऋषि नोधा गोतमोः–
इन्होंने भी देवता, अग्नि, इंद्र, मरुत इन सभी की स्तुति की है और अपनी श्रद्धा अर्पित की है।
- ऋषि-पाराशर शाक्त्यः–
इन्होंने भी अपने छंद में अग्नि देवता को कहा है कि आप सोम के तुल्य औषधियों की वृष्टि करते हैं। बालक के तुल्य दिप्तिमान विशाल ज्योति वाले होते हैं । उसी अग्नि के विषय में अपने छंदों को लिखा है।
- ऋषि गोतमो राहूगणोः–
इन्होंने अपने छंदों मे कहा है कि हे अग्ने! गोतमवंशी तुम्हारे लिए अत्यंत उज्वल वंदनाओं की मृदु संकल्पों से प्रार्थना करते हैं । धन की इच्छा से गोतमवंशी तुम्हारी वंदनाएँ करते हैं। हम भी उज्ज्वल मंत्रों से तुम्हारा पूजन करते हैं। इसी प्रकार इंद्र, मरुत, अश्विनी कुमारों, सोम (यहाँ सोम का अर्थ रस ताकत से हैं।) उषादय- इन सभी के विषय में वंदना की है।
- ऋषि-कुत्स: अंगिरस: –
इन्होंने सभी छंदों को अग्नि को सर्मपित किया है।
- ऋषि कश्यपो मारीचः–
इन्होंने भी छंद को अग्नि को समर्पित करते हुए कहा है कि हम धनोत्पादक के लिए सोम निष्पन्न करें। जैसे नाव नदी को पार करा देती है, वैसे ही वह अग्नि हमको दुःखों से पार करा दे।
- ऋषि वज्राश्व अम्वरिब: –
इन्होंने इंद्र को बलशाली और सबसे ताकतवर बताया है। वैसे तो सभी ने इंद्र को अपने-अपने छंदों में अपनी श्रद्धा व्यक्त की है और इंद्र को शक्तिशाली बताया है उन्हें सभी देवताओं में शक्तिशाली माना है।
- ऋषि कुत्स: अंगिरसः–
इन्होंने भी देवता इन्द्र को अपना छंद सर्मपित करते हुए लिखा है कि जिसने राजा ऋजिश्रवा के संग कृष्ण नाम दैत्य की प्रजाओं का पतन किया हम उस वज्रधारी, वीर्यवान इंन्द्रदेव का मरुतों से युक्त सुरक्षा के लिए आह्वान करते हैं। और हर प्रकार से उनकी वंदना करते हुए उनका गुणगान करते हैं। इन्द्र ने जो-जो कार्य किए हैं जिन-जिन राक्षसों को मारा है,उनका भी नाम लेते हुए सबके विषय में लिखा है। जैसेः-व्यंस,शम्बर, वप्रुह्ण और शुष्ण नमाक दुष्टों का पतन किया है। ऋषि ने भी इन्द्र विश्वदेवों ,अग्नि, ऋुभुगण (ऋभुओं का मतलब तेज दिमागवालों से है जिन्होंने अपनी मेहनत से इन्द्र के समान सम्मान पाया।) देवता -उषा ,रुद्र सूर्य;सभी के लिए छंन्द लिखे हैं ।
- ऋषि- कक्षीवानः–
ऋषि- कक्षीवान उशिकपुत्र हैं। उन्होंने अपने छन्दों में अश्विनी कुमारों का गुणगान किया है, जैसे वृद्ध च्यवन ऋषि का बुढापा कवच के तुल्य हटा दिया। और बन्धुओं द्वारा परित्यक्त ऋषि की आयु को वृद्धि कर कन्याओं का पति बना दिया। अर्थवा के पुत्र दध्यड ने अश्व के सिर को मध- विधा सिखायी। ऋजाश्रव को उनके पिता ने अंधा कर दिया था। उनके लिए तुमने सर्वश्रेष्ठ ज्योति वाली आँखें दी। इसी प्रकार ऋषि कक्षिवान इंन्द्र से प्रार्थना करते है कि मनुष्यों के रक्षक इंन्द्रेव, भक्त अंगिराओं की वंदना कब सुनेंगे? ये जब गृहस्थ यजमान के सभी यज्ञकर्ताओं को अपने सभी तरफ देखेंगे तब अत्यंन्त उत्साहपूर्वक जल्दी से प्रकट होंगे।यहाँ सभी ऋषियों ने देवता इंन्द्र को महत्व दिया है, और हर प्रकार से उन्हें खुश करने के लिए अपने छंन्दों में उनका गुणगान किया है।