ऋग्वेद-अध्याय(01)

अध्याय – 1   ऋषि मधुच्छन्दा विश्वामित्र: –     इन्होंने अग्नि वायु, इन्द्र वरुण, अश्विनौ विश्वदेवा, सरस्वती, मरुद, इन सभी के प्रति अपनी श्रध्दा व्यक्त करते हुए सभी सूक्तों को सर्मपित किया है। ऋषि जेता मधुच्छन्दस: –     इन्होंने भी इसी प्रकार से देव इन्द्र की वंदना करते हुए सूक्तों को लिखा है।3. मेधातिथि; काण्व: –  Continue reading

ऋग्वेद-अध्याय(04)

अध्याय – 4   ऋषि भरद्वाजो बृहस्पत्यः– हे द्यावाधरा! महान कर्म वाले मनुष्यों को तुम जल प्रदान करती हो द्यावाघरा जल द्वारा अच्छादित है और जल का ही शरण करती है। वे विस्तीर्ण जल से ओत-प्रोत और जल वृष्टि का विधान करने वाली हो। अनुष्ठान करने वाले यजमान उनसे सुख माँगते हैं। जल का दोहन Continue reading

ऋग्वेद-अध्याय(03)

अध्याय – 3   ऋषि- विश्वामित्र: –  यह छंन्द अग्नि को सर्मर्पित है। सदैवगतिमान अग्नि के लिए जिस उषाकाल में हवि प्रदान करते हुए अनुष्ठान किया जाता है वह उषाकाल सुसज्जित है। वह उषाकाल धन ऐश्वर्य से परिपूर्ण होकर प्रकाशयुक्त होता है।           गुफा मे वास करने वाले रिपु और उनकी सेनाओं को पराजित करने वाली अग्नि Continue reading

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