श्रीमद् भगवदगीता माहात्म्य

धरोवाच भगवन्परमेशान भक्तिरव्यभिचारिणी । प्रारब्धं भुज्यमानस्य कथं भवति हे प्रभो ।।1।। श्री पृथ्वी देवी ने पूछाः हे भगवन ! हे परमेश्वर ! हे प्रभो ! प्रारब्धकर्म को भोगते हुए मनुष्य को एकनिष्ठ भक्ति कैसे प्राप्त हो सकती है?(1)श्रीविष्णुरुवाच प्रारब्धं भुज्यमानो हि गीताभ्यासरतः सदा । स मुक्तः स सुखी लोके कर्मणा नोपलिप्यते ।।2।। श्री विष्णु भगवान बोलेः प्रारब्ध को भोगता हुआ जो Continue reading

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