अठारहवाँ अध्यायः मोक्षसंन्यासयोग- श्रीमद् भगवदगीता

दूसरे अध्याय के 11वें श्लोक से श्रीमद् भगवद् गीता के उपदेश का आरम्भ हुआ है। वहाँ से लेकर 30वें श्लोक तक भगवान ने ज्ञानयोग का उपदेश दिया है और बीच में क्षात्रधर्म की दृष्टि से युद्ध का कर्तव्य बता कर 39वेंश्लोक से अध्याय पूरा हो तब तक कर्मयोग का उपदेश दिया है। फिर तीसरे अध्याय Continue reading

सत्रहवाँ अध्यायः श्रद्धात्रयविभागयोग- श्रीमद् भगवदगीता

सोलहवें अध्याय के आरम्भ में भगवान श्रीकृष्ण ने निष्काम भाव से आचरण करते हुए शास्त्रीय गुण तथा आचरण का वर्णन दैवी संपत्ति के रूप में किया। बाद में शास्त्र विरुद्ध आसुरी संपत्ति का वर्णन किया। उसकेबाद आसुरी स्वभाववाले लोगों के पतन की बात कही और कहा कि काम, क्रोध और लोभ ही आसुरी संपत्ति के Continue reading

सोलहवाँ अध्यायः दैवासुरसंपद्विभागयोग- श्रीमद् भगवदगीता

7 वें अध्याय के 15वें श्लोक में तथा 9वें अध्याय के 11वें तथा 12 वें श्लोक में भगवान ने कहा हैः ‘आसुरी तथा राक्षसी प्रकृति धारण करने वाले मूढ़ लोग मेरा भजन नहीं करते हैं लेकिन मेरा तिरस्कार करते हैं।’ और नौवें अध्याय के 13वें और 14वें श्लोक में कहाः ‘दैवी प्रकृतिवाले महात्मा पुरुष मुझे Continue reading

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