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श्रीमद् भगवदगीता
10 फायदे : युवा से लेकर बुजुर्ग तक…जानें किस व्यक्ति को क्यों पढ़नी चाहिए गीता
व्यक्ति को गीता किस उद्देश्य से पढ़नी या सुननी चाहिए, इसके बारे में जानकारी होना सभी के लिए जरूरी होता है। हर किसी को अपनी उम्र और परिस्थिति के अनुसार श्रीमद्भागवत गीता से शिक्षा लेनी चाहिए। जानिए आपको किस उद्देश्य से गीता का पाठ करना चाहिए-
1) युवाओं को– जीवन जीने का सही तरीका सीखने के लिए।
2) बुर्जुगों को- मृत्यु का सही अर्थ और मोक्ष प्राप्ति के लिए।
3) व्याकुल को- बुद्धिमत्ता यानी सही रास्ता जानने के लिए।
4) क्रोधी को- मानवता सीखने के लिए।
5) अमीर को- दया और सहानुभूति की भावना सीखने के लिए।
6) कमजोर को- शक्ति और सामर्थ्य पाने के लिए।
7) ताकतवर को- अपनी ताकत को सही दिशा देने के लिए।
8) अशांत को- मन की शांति के लिए।
9) पापी को- प्रायश्चित के लिए।
10) भटके हुए मनुष्य को- सही मार्गदर्शन के लिए।
गीता का दूसरा नाम गीतोपनिषद
गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। गीता का दूसरा नाम गीतोपनिषद है।
इसमें 18 ऐसे अध्याय हैं जिनमें आपके जीवन से जुड़े हर सवाल का जवाब और आपकी हर समस्या का हल मिल सकता है।
पहला अध्याय : गीता का पहला अध्याय अर्जुन-विषाद योग है। इसमें 46 श्लोकों द्वारा अर्जुन की मन: स्थिति का वर्णन किया गया है कि किस तरह अर्जुन अपने सगे-संबंधियों से युद्ध करने से डरते हैं और किस तरह भगवान कृष्ण उन्हें समझाते हैं।
दूसरा अध्याय : गीता के दूसरे अध्याय सांख्य-योग+ में कुल 72 श्लोक हैं जिसमें श्रीकृष्ण, अर्जुन को कर्मयोग, ज्ञानयोग, सांख्ययोग, बुद्धि योग और आत्म का ज्ञान देते हैं। यह अध्याय वास्तव में पूरी गीता का सारांश है। इसे बेहद महत्वपूर्ण भाग माना जाता है।
तीसरा अध्याय : गीता का तीसरा अध्याय कर्मयोग है, इसमें 43 श्लोक हैं। श्रीकृष्ण इसमें अर्जुन को समझाते हैं कि परिणाम की चिंता किए बिना हमें हमारा कर्म करते रहना चाहिए।
चौथा अध्याय : ज्ञान कर्म संन्यास योग गीता का चौथा अध्याय है, जिसमें 42 श्लोक हैं। अर्जुन को इसमें श्रीकृष्ण बताते हैं कि धर्मपारायण के संरक्षण और अधर्मी के विनाश के लिए गुरु का अत्यधिक महत्व है।
पांचवां अध्याय : कर्म संन्यास योग गीता का पांचवां अध्याय है, जिसमें 29 श्लोक हैं। अर्जुन इसमें श्रीकृष्ण से पूछते हैं कि कर्मयोग और ज्ञान योग दोनों में से उनके लिए कौन-सा उत्तम है। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि दोनों का लक्ष्य एक है परन्तु कर्म योग बेहतर है।
छठा अध्याय : आत्मसंयम योग गीता का छठा अध्याय है, जिसमें 47 श्लोक हैं। इसमें श्रीकृष्ण, अर्जुन को अष्टांग योग के बारे में बताते हैं। वह बताते हैं कि किस प्रकार मन की दुविधा को दूर किया जा सकता है।
सातवां अध्याय : ज्ञानविज्ञान योग गीता का सातवां अध्याय है, जिसमें 30 श्लोक हैं। इसमें श्रीकृष्ण निरपेक्ष वास्तविकता और उसके भ्रामक ऊर्जा +माया+ के बारे में अर्जुन को बताते हैं।
आठवां अध्याय : गीता का आठवां अध्याय अक्षरब्रह्मयोग है, जिसमें 28 श्लोक हैं। गीता के इस पाठ में स्वर्ग और नरक का सिद्धांत शामिल है। इसमें मृत्यु से पहले व्यक्ति को सोच, आध्यात्मिक संसार तथा नरक और स्वर्ग को जाने की राह के बारे में बताया गया है।
नौवां अध्याय : राजविद्याराजगुह्य योग गीता का नवां अध्याय है, जिसमें 34 श्लोक हैं। इसमें यह बताया है कि श्रीकृष्ण की आंतरिक ऊर्जा सृष्टि को व्याप्त बनाती है उसका सृजन करती है और पूरे ब्रह्मांड को नष्ट कर देती है।
दसवां अध्याय : विभूति योग गीता का दसवां अध्याय है जिसमें 42 श्लोक हैं। इसमें श्रीकृष्ण अर्जुन को यह बताते हैं कि किस प्रकार सभी तत्वों और आध्यात्मिक अस्तित्व के अंत का कारण बनते हैं।
ग्यारहवां अध्याय : विश्वस्वरूपदर्शन योग गीता का ग्यारहवां अध्याय है जिसमें 55 श्लोक हैं। इस अध्याय में अर्जुन के निवेदन पर श्रीकृष्ण अपना विश्वरूप धारण करते हैं।
बारहवां अध्याय : भक्ति योग गीता का बारहवां अध्याय है जिसमें 20 श्लोक हैं। इस अध्याय में कृष्ण भगवान भक्ति के मार्ग की महिमा अर्जुन को बताते हैं। इसके साथ ही वह भक्ति योग का वर्णन अर्जुन को सुनाते हैं।
तेरहवां अध्याय : क्षेत्र क्षत्रज्ञ विभाग योग गीता तेरहवां अध्याय है इसमें 35 श्लोक हैं। इसमें श्रीकृष्ण अर्जुन को क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के ज्ञान के बारे में तथा सत्व, रज और तम गुणों द्वारा अच्छी योनि में जन्म लेने का उपाय बताते हैं।
चौदहवां अध्याय : गणत्रय विभाग योग है इसमें 27 श्लोक हैं। इसमें श्रीकृष्ण सत्व, रज और तम गुणों का तथा मनुष्य की उत्तम, मध्यम अन्य गतियों का विस्तारपूर्वक वर्णन करते हैं। अंत में इन गुणों को पाने का उपाय और इसका फल बताया गया है।
पंद्रहवां अध्याय : गीता का पंद्रहवां अध्याय पुरुषोत्तम योग है, इसमें 20 श्लोक हैं। इसमें श्रीकृष्ण कहते हैं कि दैवी प्रकृति वाले ज्ञानी पुरुष सर्व प्रकार से मेरा भजन करते हैं तथा आसुरी प्रकृति वाले अज्ञानी पुरुष मेरा उपहास करते हैं।
सोलहवां अध्याय : दैवासुरसंपद्विभाग योग गीता का सोलहवां अध्याय है, इसमें 24 श्लोक हैं। इसमें श्रीकृष्ण स्वाभाविक रीति से ही दैवी प्रकृति वाले ज्ञानी पुरुष तथा आसुरी प्रकृति वाले अज्ञानी पुरुष के लक्षण के बारे में बताते हैं।
सत्रहवां अध्याय : श्रद्धात्रय विभाग योग गीता का सत्रहवां अध्याय है, इसमें 28 श्लोक हैं। इसमें श्रीकृष्ण अर्जुन को यह बताते हैं कि जो शास्त्र विधि का ज्ञान न होने से तथा अन्य कारणों से शास्त्र विधि छोडऩे पर भी यज्ञ, पूजा आदि शुभ कर्म तो श्रद्धापूर्वक करते हैं, उनकी स्थिति क्या होती है।
अठारहवां अध्याय : मोक्ष-संन्यास योग गीता का अठारहवां अध्याय है, इसमें 78 श्लोक हैं। यह अध्याय पिछले सभी अध्यायों का सारांश है। इसमें अर्जुन, श्रीकृष्ण से न्यास यानी ज्ञानयोग का और त्याग अर्थात फलासक्ति रहित कर्मयोग का तत्व जानने की इच्छा प्रकट करते हैं।
गीता में श्रीकृष्ण भगवान के नामों के अर्थ
अनन्तरूपः- जिनके अनन्त रूप हैं वह | अच्युतः- जिनका कभी क्षय नहीं होता, कभी अधोगति नहीं होती वह | अरिसूदनः- प्रयत्न के बिना ही शत्रु का नाश करने वाले | कृष्णः ‘कृष्‘- सत्तावाचक है | ‘ण‘ आनन्दवाचक है | इन दोनों के एकत्व का सूचक परब्रह्म भी कृष्ण कहलाता है | केशवः- क माने ब्रह्म को और ईश – शिव को वश में रखने वाले | केशिनिषूदनः- घोड़े का आकार वाले केशि नामक दैत्य का Continue reading
श्रीगीतामाहात्म्य का अनुसंधान
शौनक उवाच गीतायाश्चैव माहात्म्यं यथावत्सूत मे वद। पुराणमुनिना प्रोक्तं व्यासेन श्रुतिनोदितम्।।1।।शौनक ऋषि बोलेः हे सूत जी ! अति पूर्वकाल के मुनि श्री व्यासजी के द्वारा कहा हुआ तथा श्रुतियों में वर्णित श्रीगीताजी का माहात्म्य मुझे भली प्रकार कहिए |(1) सूत उवाच पृष्टं वै भवता यत्तन्महद् गोप्यं पुरातनम्। न केन शक्यते वक्तुं गीतामाहात्म्यमुत्तमम्।।2।। सूत जी बोलेः आपने जो पुरातन Continue reading