छठा अध्यायः आत्मसंयमयोग- श्रीमद् भगवदगीता

पाँचवें अध्याय के आरम्भ में अर्जुन ने भगवान से “कर्मसंन्यास” (सांख्य योग) तथा कर्मयोग इन दोनों में से कौन सा साधन निश्चितरूप से कल्याणकारी है यह जानने की प्रार्थना की | तब भगवान ने दोनों साधनों को कल्याणकारी बताया और फल में दोनों समान हैं फिर भी साधन में सुगमता होने से कर्मसंन्यास की अपेक्षा Continue reading

पाँचवाँ अध्यायः कर्मसंन्यासयोग- श्रीमद् भगवदगीता

तीसरे और चौथे अध्याय में अर्जुन ने भगवान श्रीकृण्ण के मुख से कर्म की अनेक प्रकार से प्रशंसा सुनकर और उसके अनुसार बरतने की प्रेरणा और आज्ञा पाकर साथ-साथ में यह भी जाना कि कर्मयोग के द्वारा भगवत्स्वरूप का तत्त्वज्ञान अपने-आप ही हो जाता है | चौथे अध्याय के अंत में भी भगवान ने उन्हें Continue reading

चौथा अध्याय: ज्ञानकर्मसन्यासयोग- श्रीमद् भगवदगीता

तीसरे अध्याय के श्लोक 4 से 21 तक में भगवान ने कई प्रकार के नियत कर्मों के आचरण की आवश्यकता बतायी, फिर 30वें श्लोक में भक्ति प्रधान कर्मयोग की विधि से ममता, आसक्ति और कामनाओं का सर्वथा त्याग करके प्रभुप्रीत्यर्थ कर्म करने की आज्ञा दी | उसके बाद 31 से 35 वे श्लोक तक उस Continue reading

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