नौवाँ अध्यायः राजविद्याराजगुह्ययोग- श्रीमद् भगवदगीता

सातवें अध्याय के आरम्भ में भगवान ने विज्ञानसहित ज्ञान का वर्णन करने की प्रतिज्ञा की थी। उस अनुसार उस विषय का वर्णन करते हुए आखिर में ब्रह्म, अध्यात्म, कर्म, अधिभूत, अधिदैव और अधियज्ञसहित भगवान को जानने की और अतंकाल में भगवान के चिंतन की बात कही है फिर आठवें अध्याय में विषय को समझने के Continue reading

आठवाँ अध्यायः अक्षरब्रह्मयोग- श्रीमद् भगवदगीता

सातवें अध्याय में 1 से 3 श्लोक तक भगवान ने अर्जुन को सत्यस्वरुप का तत्व सुनने के लिए सावधान कर उसे कहने की प्रतिज्ञा की | फिर उसे जानने वालों की प्रशंसा करके 27वें श्लोक तक उस तत्त्व को विभिन्न तरह से समझाकर उसे जानने के कारणों को भी अच्छी तरह से समझाया और आखिर Continue reading

सातवाँ अध्यायः ज्ञानविज्ञानयोग- श्रीमद् भगवदगीता

।। अथ सप्तमोऽध्यायः।।   श्री भगवानुवाच मय्यासक्तमनाः पार्थ योगं युंजन्मदाश्रयः । असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु ।।1।। श्री भगवान बोलेः हे पार्थ ! मुझमें अनन्य प्रेम से आसक्त हुए मनवाला और अनन्य भाव से मेरे परायण होकर, योग में लगा हुआ मुझको संपूर्ण विभूति, बल ऐश्वर्यादि गुणों से युक्त सबका आत्मरूप जिस प्रकार संशयरहित Continue reading

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