हनुमान साठिका

।। दोहा।।

बीर बखानों पवनसुत , जानत सकल जहान ।

धन्य धन्य अंजनी तनय, संकर हर हनुमान ।।

 

भावार्थ – मैं वीर पवन कुमार की कीर्ति का वर्णन कर रहा हूं जिन्हें सम्पूर्ण जगत जानता है। हे प्रभु हनुमान जी आप धन्य हैं। हे शंकर के अवतार हनुमान जी आप धन्य हैं।

।। चौपाई ।।

जय जय जय हनुमान अडंगी , महावीर विक्रम बजरंगी ।

जय कपीश जय पवन कुमारा ,

जय जग बंदन शील अगारा ।।

जय आदित्य अमर अविकारी

अरि मर्दन जय जय गीरिधारी ।

अंजनी उदर जन्म तुम लीन्हा, जय जयकार देवतन कीनहा ।। १ ।।

 

भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी आपकी जय हो, जय हो , जय हो । हे प्रभु आप वज्र के समान बलशाली है आपकी जय हो। हे प्रभु हनुमान जी आप कापियों के राजा है आपकी जय हो। हे प्रभु हनुमान जी आप शत्रुओं का विनाश करते हैं आपकी जय हो । हे प्रभु हनुमान जी जब आपने माता अंजनी के गर्भ से जन्म लिया तब सभी देवताओं ने आपकी  जय जयकार की थी।

 

बाजै दुंदुभि गगन गंभीरा , सुर में हरष असुर मन पीरा ।

कपि के डर , गढ़ लंक सकानी , छूटी बंदी देवतन जानी ।।

ऋषि समूह निकट चलि आये  ,पवन तनय के पद सिर नाये ।

बार बार अस्तुति करि नाना , निर्मल नाम धरा हनुमाना ।। २ ।।

 

भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी जब आपका जन्म हुआ तब आसामन में नागड़े बजे , देवताओं में मन हर्षित हुए अर्थात उन्हें प्रशन्नता हुई । वहीं दूसरी ओर असुरों के मन में पीड़ा हुईं । हे प्रभु हनुमान जी आपके डर से लंका के लोग भी भयभीत हो गए । सभी देवताओं को बंदी गृह में से छूटने की आशा जगने लगी । हे प्रभु हनुमान जी आपके निकट सभी ऋषि आए और आपके चरणों में झुककर आपकी स्तुति करने लगे और आपका पवित्र नाम ” हनुमान ” रखा ।

 

सकल ऋषिन मिलि अस मत ठाना , दीन बताय लाल फल खाना ।

सुनत वचन कपि मन हर्षाना , रवि रथ उदय लाल फल जाना ।।

रथ समेत कपि कीन अहारा , सूर्य बिना भया अति अंधियारा ।

बिनय तुम्हार करें अकुलाना , तब कपीश के अस्तुति ठाना ।। ३ ।।

 

भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी सभी ऋषियों ने जब आपको लाल फल खाने की प्रेरणा तब आपका मन बहुत ही हर्षित हुआ और आपने सूर्य देव को ही लाल फल समझ लिया था। जिसके बाद आपने सूर्य देव को ही लाल फल समझ कर खा लिया था । जिससे सम्पूर्ण जगत में अंधकार छा गया और चारों ओर हा हा कार मच गया ।जिसके बाद सभी देवताओं, ऋषियों और मुनियों ने आपसे विनती की आप सूर्य देव छोड़ दीजिए ।

 

सकल लोक वृतांत सुनावा , चतुरानन तब रवि उगिलावा ।

कहा बहोरि सुनहु बल शीला , रामचन्द्र तब करिहै बहु लीला ।।

तब तुम उनकर करब सहाई , अबहिं बसहु कानन में जाई ।

असकहि बिधि निजलोक सिधारा , मिले सखा संग पवन कुमारा ।। ४ ।।

 

भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी जब देवताओं और ऋषियों ने यह पूरी घटना ब्रह्मा जी की सुनाई । तब ब्रह्मा जी ने आपसे सूर्य देव को उगलने के लिए मनाया और आपसे कहा कि जब प्रभु श्री राम को आपकी सहायता की आवश्यकता होगी तब आप उनकी सहायता करिएगा। तब तक आप वन में जाकर रहें ।इतना कहकर ब्रह्मा जी अपने लोक चले गए । उसके बाद आप भी वन में अपने सखाओं से मिल गए ।

 

खेलैहिं खेल महातरू तौरें , ढेर करैं‌ बहु पर्वत फोरैं ।

जेहि गिरि चरण देहि कपि धाई , गिरि समेत पातालहिं जाई ।।

कपि सुग्रीव बालि की त्रासा , निरखत रहे राम मगु आसा ।

मिले राम तहँ पवन कुमारा , अति आनंद सप्रेम दुलारा ।। ५ ।।

 

भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी वन में आपने खेल ही खेल में बड़े बड़े वृक्षों को तोड़ डाला और पर्वतों को फोड़कर उनका ढेर लगा दिया।हे प्रभु हनुमान जी आपने ही आपने जिस भी पर्वत पर चरण रखा वह पाताल में चला गया। हे प्रभु जब सुग्रीव बालि से बालि से भयभीत हुए तब आपने ही उन्हें प्रभु श्री राम से मिलवाया था। जिससे आपको अति आंनद प्राप्त हुआ ।

 

मणि मुंदरी रघुपति सों पाई, सीता खोज चले सिर नाई ।

शतयोजन जल निधि विस्तारा , अगम अपार देवतन हारा ।।

जिमिसर गोखुर सरिस कपीशा, लांघि गए कपि कहि जगदीशा ।

सीता चरण सीस तिन नाये , अजर अमर की आशिस पाये ।। ६ ।।

 

भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी जब प्रभु श्री राम ने आपको मणि जड़ित अंगूठी दी तब आप माता सीता की खोज के लिए चले गए। हे प्रभु सौ योजन का विशाल समुद्र जिसे देवता और ऋषि मुनि भी पार नहीं कर सकते थे उसे आपने गाय के गोखुर की तरह एक ही बार में प्रभु श्री राम का नाम लेकर पार कर लिया । फिर जब माता सीता के पास पहुंचकर उनके चरणों में अपना सिर झुकाया और अंगूठी दिखाई तब माता सीता ने आपको आशीर्वाद दिया ।

रहे दनुज उपवन रखवारी , एक से एक महाभट भारी ।

तिन्हैं मारि पुनि कहेउ कापीशा , दहेउ लंक कांप्यो भुज बीसा ।।

सिया बोध दें पुनि फिरि आए , रामचन्द्र के पद सिर नाए ।

मेरु उपारि आपु छिन माँही ,

बाँधे सेतु निमिष इक माहीं ।। ७।।

 

भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी जैसा कि हम जानते हैं कि अशोक वाटिका की रखवारी एक से एक बड़े योद्धा करते थे । जिन्हें आपने मारा , लंका को जलाया , जिससे रावण आपसे भयभीत हो गया ।फिर आपने माता को जानकारी दी और वापस आकर प्रभु श्री राम के चरणों में अपना सिर झुकाया । उसके बाद बड़े बड़े पर्वतों को लाकर क्षण में ही समुद्र में पुल बना लिया ।

 

लक्ष्मण शक्ति लागी जबही ,

राम बुलाय कहा पुनि तबहीं ।

भवन समेत सुखेन ले लाये ,

तुरत संजीवन को तुम धाये ।।

मग महँ कालनेमि कहँ मारा, अमित सुभट निशिचर संहारा ।

आनि संजीवन गिरि समेता ,

र दीनहों जहँ कृपा निकेता ।। ८ ।।

 

भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी लक्ष्मण जी को शक्ति लगी तब ही प्रभु श्री राम ने आपको सुषेन वैध को लेने के लिए भेजा । जिसके बाद सुषेन वैध को आप भवन के साथ ही ले आए । जिसके बाद जब सुषेन वैध ने संजीवन बूटी को लेने के लिए आपको भेजा तो आप पूरा पर्वत ही उठा लाए और रास्ते में आपने कालनेमी राक्षस को मारा और जितने भी निशाचर तथा राक्षस मिले उन्हें नष्ट कर दिया। जिसके बाद आपने संजीवन बूटी के पर्वत को प्रभु श्री राम के सामने रख दिया ।

 

फनपति केर शोक हरि लीना , बरिष सुमन ,सुर जय जय कीना ।

अहिरावण हरि अनुज समेता ,

लै गयो जहां पाताल निकेता ।।

जहां रहै देवि अस्थाना ,

दीन चहै बलि काढि कृपाना ।

पवन तनय प्रभु कीन्ह गुहारी ,

कटक समेत निशाचर मारी ।। ९ ।।

 

भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी जब आपने लक्ष्मण जी के ऊपर आए संकट को दूर किया तो सभी देवताओं ने आपके ऊपर फूलों की वर्षा की और आपकी जय जय कार की । इसके बाद जब अहिरावण प्रभु श्री राम और उनके भाई लक्ष्मण को जब माता की बलि के लिए पाताल में के गया तब आपने ही वहां पहुंचकर उसे वहां सेना के साथ मार डाला।

 

रीछ कीशपति सबै बहोरी , राम लक्षन कीने यक ठोरी ।

सब देवतन की बंदी छुड़ाए,

सोई कीर्ति मुनि नारद गाए ।।

अक्षय कुमार दनुज बलवाना , सान केतु कहँ सब जग जाना ।

कुंभकर्ण रावण कर भाई ,

ताहि निपात कीनह कपिराई ।। १० ।।

 

भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी जिस स्थान जामवंत और सुग्रीव थे उसी स्थान पर आप प्रभु श्री राम और उनके भ्राता लक्ष्मण जी को अपने साथ ले आए ।जिसके बाद आपने सभी देवताओं को बंधन से मुक्ति दिला दी जिसके नारद मुनि ने आपका यशगान किया । अक्षय कुमार राक्षस बहुत ही बलवान था और केतु को तो सारा संसार ही जानता है। साथ ही रावण का भाई कुंभकर्ण भी था । हे प्रभु हनुमान जी आपने सभी का विनाश किया ।

 

मेघनाद पर शक्ति मारा ,

पवन तनय तब सौं बरियारा ।

रहा तनय नारांतक जाना ,

पल महं ताहि हने हनुमाना ।

तहँ लगि मान दनुज कर पावा ,

पवन तनय सब मारि नसावा ।

जय मारूत सुत जय अनुकूला ,

नाम कृशानु शोक सम तूला ।। ११।।

 

भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी आपने युद्ध में मेघनाद को अपनी शक्ति से मारा। हे प्रभु आपके सामने कौन बलवान है। हे प्रभु आपने रावण के पुत्र नारांतक को भी क्षण भर में परास्त कर दिया । हे प्रभु आपने जहां भी राक्षसों को पाया वहां उनको नष्ट कर दिया । हे प्रभु हनुमान जी आपकी जय हो आप सेवकों के लिए सदा सहायक हुए है। आपका नाम लेने से सभी शोक समाप्त हो जाते हैं।

 

जहँ जीवन पर संकट होई ,

रवि तम सम सो संकट खोई ।

बंदी परै सूमिरै हनुमाना ,

संकट कटै धरै जो ध्याना ।।

जाको बाँध बाम पद दीन्हा ,

मारुत सुत ब्याकुल बहु कीन्हा ।

सो भुजबल का कीन कृपाला ,

आछत तुम्हे मोर यह हाला ।। १२।।

 

भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी यदि किसी के जीवन में कोई संकट आता है तो प्रभु आप उसे ठीक वैसे ही दूर कर देते हैं जिस प्रकार सर्य अंधेरे को दूर कर देते हैं। हे प्रभु जो भी बंदी होने पर आपका ध्यान करता है आपकी उसकी रक्षा करते हैं। हे प्रभु आपकी शक्ति कहां है जो आपके रहते मेरी यह दशा हो गई है।

 

आरत हरत नाम हनुमाना ,

सादर सुरपति कीन बखाना ।

संकट हरे न एक रती को ,

ध्यान धरे हनुमान जती को ।।

धावहु देखि दीनता मोरी ,

कहौं पवन सुत युग कर जोरी ।

कपिपति बेगि अनुग्रह करहु

आतुर आयी  दुसह दुख हरहू ।। १३ ।।

 

भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी आपका नाम संकटमोचन भी है । हे प्रभु देवराज इन्द्र यह वर्णन करते हैं कि जो भी आपका ध्यान करता है उस रत्ती के बराबर भी संकट नहीं रहता है। हे प्रभु आप मेरी दीनता देखिए और पवन की गति से आइए और मेरे बंधनों को काट दीजिए । हे प्रभु आप मुझ पर शीघ्र कृपा करिए और मुझ दास के दुखों को दूर करने के लिए आतुर होकर आइए।

 

राम शपथ मैं तुम्हीं सुनाया ,

जवन गुहार लाग सिय जाया ।

पैज तुम्हार सकल जग जाना ,

भव बंधन भंजन हनुमाना ।।

यह बंधन कर केतिक बाता ,

नाम तुम्हार जगत सुख दाता ।

करौ कृपा जय जय जग स्वामी

बार अनेक नमामि नमामी ।। १४ ।।

 

भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी आप मेरी पुकार सुनकर न आओ तो मैं आपको प्रभु श्री राम की शपथ देता हूं। हे प्रभु आपका यश और कीर्ति सम्पूर्ण जगत जानता है। हे प्रभु आप संसार में बार बार जन्म लेने के भय को भी दूर करने वाले हैं तो मेरा बंधन भी दूर कर दीजिए। हे प्रभु आपके नाम से पूरा जग सुखी हो जाता है। हे प्रभु कृपा करो । हे प्रभु आपकी जय हो जय हो जय हो । मैं बार बार आपको नमस्कार करता हूं ।

भोम वार कर होम विधाना ,

धूप दीप नैवद्य सुजाना ।

मंगलदायक को लौ लावै ,

सुर नर मुनि वांछित फल पावै ।।

जयति जयति जय जय जग स्वामी ,

समरथ पुरुष सुअंतर यामी ।

अंजनी तनय नाम हनुमाना

सो तुलसी के प्राण समाना ।। १५ ।।

 

भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी जो भी कोई विधि विधान से धूप और दीप आपको दान करता है वह चाहे देवता हो , मनुष्य हो, या ऋषि मुनि हो वह वांछित फल पाता है। हे जगत के स्वामी हनुमान जी आपकी जय हो जय हो जय हो । हे प्रभु आप सभी के मन की बात को जानने में समर्थ हैं। हे प्रभु अंजनी माता के पुत्र आप मुझ तुलसी के प्राण के समान हैं।

 

।। दोहा ।।

 

जय कपीश सुग्रीव तुम जय अंगद हनुमान।

राम – लखन सीता सहित करो सदा कल्याण ।।

बन्दौ हनुमत नाम यह , भौमवार परमान ।

ध्यान धरै नर निश्चय , पावै पद कल्याण ।।

जे यह साठिका पढई नित तुलसी कहैं विचारि ।

पड़े न संकट ताहि कौ साक्षी है त्रिपुरारी ।।

 

भावार्थ – सुग्रीव जी की जय हो, अंगद जी की जय हो, हनुमान जी की जय हो। हे प्रभु आप सदा ही प्रभु श्री राम और लक्ष्मण जी तथा माता सीता सहित सभी का कल्याण करो। गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि जो भी कोई इस ” हनुमान साठिका ” का पाठ प्रतिदिन करता है वह संकट में कभी नहीं पड़ता क्योंकि इसके साक्षी स्वयं त्रिपुरारी हैं।


।। सवैया ।।

 

आरत बन पुकारत हौं ,

कपीनाथ सुनो बिनती मम भारी ।

अंगद और नल- नील महाबली ,

देव सदा बल की बलिहारी ।।

जामबान सुग्रीव पवनसुत ,

द्विविद मयंद महाभटहारी ।

दुख दोष हरो तुलसी जन को

श्री द्वादश बीरन की बलिहारी ।।

 

भावार्थ – हे प्रभु हनुमान जी मै इस विपत्ति में आपको पुकार रहा हूं , मेरी विनती स्वीकार करो। हे प्रभु आप मुझ तुलसी के दुखों को दूर करें । अंगद, नल और नील, राजा बलि , भगवान राम, जाम्वान , सुग्रीव , पवन पुत्र हनुमान , द्विविद और मयंद – इन सभी १२ वीरों की बलिहारी हूं।

 

 

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