गंगोल सरोवर
मेरठ-दिल्ली मार्ग पर मेरठ के समीपस्थ परतापुर से एक मार्ग कताई मिल व अम्बेडकर हवाई पटटी की ओर जाता है जोकि आगे खरखौदा गांव के लिए चला जाता है। इसी मार्ग पर परतापुर फ्लाईओवर से करीब पांच किलोमीटर पूर्व दिशा में स्थित है गगोल तीर्थ अर्थात विश्वामित्र का आश्रम।
रामायण के अनुसार दण्डकारण्य में विश्वामित्र-भारद्धाज आदि महर्षियों के आश्रम-तपस्थली एवं वैज्ञानिक प्रयोगशालाएं थीं। महत्वपूर्ण स्थत होने के कारण रावण के गुप्तचर एवं सेना यहां विशेष निगरानी रखते थे। इस प्रकार मेरठ से लेकर हापुड़-गाजियाबाद-शाहदरा-बागपत आदि को समाहित करता हुआ यह दण्डकारण्य अथवा जनस्थान यमुना से लेकर गंगा तक विस्तृत भू-भाग में फैला हुआ था। इस जनस्थान में ऋषियों एवं नवीन खोजों की निगरानी के लिए खर दूषण-ताड़का-सुबाहु आदि महाभटट योद्धा निवास करते थे कहा जाता है कि खर-दूषण का निवास होने के कारण ही समीपस्थ गांव का नाम खरखौदा प्रसिद्ध हुआ। गंगोल तीर्थ से लगभग दो किलोमीटर पर आज ‘काली वनी’ के नाम से प्रसिद्ध वह स्थल है जहां भगवान राम ने ताड़का का वध किया था। विश्वामित्र ऋषि अपने यज्ञ की रक्षार्थ दशरथ से राम-लक्ष्मण को मांग कर यहीं पर लाये थे। राम ने अपने तीर के द्वारा भू-गर्भ से जल का स्रोत (किवंदन्तियों में गंगा) प्रकट किया। इसलिए इस तीर्थ एवं गांव का नाम गंगलो (गंगा व जल – गंगोल) प्रसिद्ध हुआ।
दीर्घ समयावधि के कारण इतिहास ने तो इसे लगभग लुप्त सा कर दिया लेकिन वेदों की भांति श्रुति-स्मुति परम्परा में यह ताजा रहा। यहां पर एक छोटा एवं कच्चा जोहड़ सा था। दूर-दूर तक पानी के अभाव में भी यह सूखता नहीं था। ग्वालियों की एक गाय प्रतिदिन इसमें पानी पीकर एवं स्नान करके जाती थी। ग्वालियों ने चकित होकर उसका पीछा किया तो यह जोहड़ दृष्टि गोचर हुआ। स्नान आदि किया तो उन्हें ताजगी का अनुभव हुआ। तब से सभी लोग यहां पर आये और लोगों को बताया कि यह विश्वमित्र ऋषि का आश्रम और भगवान के बाण से बना तीर्थ है। इसकी प्रसिद्धि के साथ-साथ विकास भी होने लगा। यहां पर एक छोटी सी नदी बहने के चिन्ह एवं चर्चे हैं। उसे सगरा या सागरा कहा जाता था। यह भी कहा जाता है कि यह जोहड़ विश्ववामित्र के यज्ञ कुण्ड का अवशेष है। खुदाई में यहां पर आज भी राख एवं बालू रेत निकलती है। पर्यटन विभाग ने इस तालाब को विस्तृत एवं पक्का बना दिया लेकिन आज इसकी हालत खराब हो चुकी है।
यहां एक धर्मशाला का निर्माण भी कराया गया है। पूर्व में विश्वामित्र मंदिर तीर्थ के नाम लगभग 500 बीघा कृषि भूमि थी जो घटते-घटते लगभग 80-90 बीघा रह गई लेकिन मौके पर मात्र 20 बीघा ही बची है। पिण्डदान हेतु इसे दूसरा गया तीर्थ माना जाता है। इसीलिए पितृ उद्धार हेतु यहां लोग दूर-दूर से पिण्ड दान करने आते हैं। यहां पर भगवान राम, लक्ष्मण एवं शिव के मन्दिर भक्तों की आस्था के केंद्र हैं। विश्वामित्र का नाम आज भी भौतिकवाद से अध्यात्म की ओर जाने की प्रेरणा देता है।
यह रामायणकालीन सरोवर करीब एक हेक्टेयर में फैला यह सरोवर चारों ओर से पक्का बना हुआ है तथा इसमें नीचे उतने के लिए सीढियां बनी हैं। नीचे से कच्चा होने के कारण इस सरोवर में हमेशा पानी भरा रहता है। माना जाता था कि पहले इसके पानी में नहाने से फोडे-फुन्सी व सफेद फूल जैसी बीमारियां ठीक हो जाया करती थीं।
गगोल तीर्थ में खिचड़ीवाले बाबा के चमत्कार की भी खूब होती हैं चर्चाएं.