विजयादशमी पर, विजय मुहूर्त
दीपावली की तरह विजयादशमी भी भारत का एक सांस्कृतिक पर्व माना जाता है, जिसका सम्बन्ध पौराणिक कथाओं में भी किया गया है। विजयादशमी से दो बातें स्पष्ट हैं: यह विजय का पर्व है तथा दूसरे, यह अश्विन माह की दशमी की तिथि को मनाया जाता है। इससे पूर्व शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक नवरात्र-पूजन किया जाता हैं जिनमें प्रतिदिन शक्ति की अधिष्ठात्री देवी दुर्गा व उनके नव स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है।
विजयदशमी को सामान्य लोग दशहरा के नाम से भी जानते हैं। उत्तर भारत के अधिकांश हिन्दी भाषी प्रदेशों में विजयदशमी का पर्व राम की रावण पर विजय यानी असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व को रावण पर राम की अर्थात् पाप पर पुण्य की, अन्याय पर न्याय, अज्ञान और असत्य पर ज्ञान और सत्य की विजय के रूप में मनारावण अत्याचारी, अनाचारी, पापी था। उसने छल से देवी सीता का अपहरण कर महान् दुष्कर्म किया था। राम ने अपनी सती-साध्वी पतिव्रता पत्नी को मुक्त कराने के लिए वानरों और रीछों की सहायता से लंका पर आक्रमण कर, नौ दिन तक घमासान युद्ध करने के बाद दैत्यों पर विजय पाई थी, उसके महान वीर सेनापतियों और रावण सहित उसके भाई कुम्भकरण और पुत्र मेघनाथ आदि का वध कर लंका को जीता था, सीता का उद्धार किया था। राम की विजय आसुरी वृत्तियों पर दैवी वृतियों की विजय थी और वह शक्ति से प्राप्त की गई थी। अतः इस पर्व का नाम विजय-पर्व, शक्ति-पर्व या विजयादशमी रखा गया।
दशहरे के दिन घर-परिवारों में पूर्वान्ह में हनुमान जी पूजा होती है, एक पलंग पर कलम-दवात्, पुस्तकें, बहियाँ, अस्त्र-शस्त्र रखकर उस पलंग की परिक्रमा की जाती हैं। बुद्धिजीवी परिवारों में अस्त्र-शस्त्र तो होते नहीं, कलम-दवात होती है। अतः वे उसी की पूजा करते हैं।
अलग-अलग स्थानों की रामलीलाओं में अपनी कुछ विशिष्टता भी होती है जैसे दिल्ली के दरीबा कलां स्थित राम मंदिर से निकलकर चांदनी चौक, नई सड़क, चावड़ी बाजार होती हुई रामलीला मैदान में पहुंचती हैं। कभी-कभी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा अन्य प्रतिष्ठित नागरिक भी वहाँ पहुँचकर उत्सव की शान बढ़ाते हैं। भारत में कुल्लू का दशहरा अट्ठाईस पहियों वाले रथ पर रघुनाथ जी की मूर्ति रखकर, गाने बजाने के साथ निकालकर मनाया जाता है। व्यास नदी के तट पर काँटों के ढेर की लंका जलाई जाती है। पंचप्राणियों: भैंस, कौआ, बकरा, मछली और केकड़े की बली दी जाती है। मैसूर के दशहरे का स्वरूप उस समय अत्यन्त भव्य था जब वहाँ राजा राज्य करता था। हाथी, घोड़ों, ऊँटों पर भव्य सवारियाँ निकलती थीं, बहुत चमक-दमक होती थी। अब भी परिपाटी पालन तो होता है पर वह शान नहीं रही। इस मौसम में खरीफ की फसल भी काटी जाने लगती है। अतः नवधान्य प्राप्ति का उल्लास भी इस पर्व के साथ जुड़ जाता है। बहिनें भाइयों का तिलक करते समय इसी नवान्न का प्रतीक ‘नौरता’ उनके कानों में लगाती हैं। नौरता नवरात्र में बोये ‘जौ’ का पुष्पित रूप ही तो है।
- विजय मुहूर्त : दोपहर 2.13 से 3.01 तक का समय
- दशमी तिथि प्रारंभ : 4 अक्टूबर को दोपहर 2.20 बजे से
- दशमी तिथि पूर्ण : 5 अक्टूबर को दोपहर 12.00 बजे तक
- श्रवण नक्षत्र प्रारंभ : 4 अक्टूबर को रात्रि 10.51 बजे से
- श्रवण नक्षत्र पूर्ण : 5 अक्टूबर को रात्रि 9.15 बजे तक
शमी पूजन का महत्व
विजयादशमी के दिन शमी के पौधे का पूजन करने से आयु, आरोग्य और शक्ति में वृद्धि होती है ऐसा मन जाता है। पापों का नाश होता है और परंपरागत रूप से आज के दिन शमी की पूजन क्षत्रियों तथा राजा-महाराजाओं द्वारा की जाने की परंपरा रही है। आज भी यह परंपरा अनेक क्षत्रिय घरों में होती है। इसके लिए उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित शमी के पेड़ का पूजन किया जाता है। अब तो घरों के गमलों में लगे शमी के पौधे का भी पूजन किया जाता है।