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Dohari Ghat, Mau
दोहरी घाट मऊ जिले में घाघरा(सरयू) नदी के किनारे बसा हुआ एक कस्बा है।यहाँ लोग प्रायः मृतकों के अन्तिम संस्कार के लिए और नदी में स्नान के लिए आते है।घाट के पास “मुक्ति धाम” नाम से पार्क बना है।जिसमे घूमने के लिए आसपास के लोग आते हैं।मुक्ति धाम में तरह तरह के जानवरों को भी रखा गया है जो आकर्षण का केंद्र बनते हैं।मुक्ति धाम में एक बड़ा हाल बना है जहाँ मृतक के अंतिम संस्कार के समय लोग इन्तजार करते है।धीरे धीरे अब मुक्ति धाम के पास तरह तरह की दुकानें भी लगने लगी हैं।पूर्णिमा व अन्य त्योहारों पर यहाँ मेला लगता है।दोहरीघाट (मुक्ति धाम) आज़मगढ़ जिला मुख्यालय से 36 किमी दूर है।यहाँ जाने के लिए बस और टैक्सी जैसे साधन उपलब्ध हैं।आज़मगढ़ से जीयनपुर कस्बे से होते हुए वहाँ पहुँचा जाता है।
दोहरीघाट एक ऐतिहासिक शहर है। राम और भगवान परशुराम मिलते हैं तो इसका नाम दोहरीघाट पड़ा। यहीं पर राम परशुराम संवाद हुआ। परशुराम के कहने पर प्रभु राम ने एक शिवलिंग की स्थापना की। शिवलिंग के बगल मे मां पार्वती (गौरी) की स्थापना हुई। इस स्थान का नाम गौरीशंकर घाट पड़ा। शिवलिंग की विशेषता है कि यह बिना अरघे का है। यहां रविवार के दिन भारी संख्या में श्रद्घालुओं का हुजूम उमड़ता है। किवदंती के अनुसार दरगाह का एक कोढी वर्र्षों पूर्व प्रतिदिन सरयू नदी में स्नान करने के बाद भगवान शंकर को जल चढ़ाता था । उसका यह क्रम वर्र्षों तक चलता रहा। कुछ वर्र्षों के बाद वह ठीक हो गया। इस व्यक्ति ने मंदिर को भव्य रूप प्रदान किया।
यहां दो मंदिर जैसे जानकी मंदिर और भगवान शिव और प्रसिद्ध घाट गौरी शंकर घाट स्थित है। दोहरी घाट (दो हरि) इस तथ्य से आता है कि दो विष्णु (हरि) अवतार यहां मिले थे – छठा अवतार परशुराम, और 7 वां अवतार श्री राम। मिथिला से लौटते समय, सीता-राम के विवाह के बाद, परशुराम यहां श्री राम से मिले और परीक्षण किया कि वह वास्तव में शिव के बाण को तोड़ने वाले थे। इस प्रकार इस ऐतिहासिक स्थान को दोहरीघाट (दो हरि घाट) के नाम से जाना जाता है।
यह स्थान मुक्तिधाम नामक एक पार्क के लिए भी जाना जाता है जो घाघरा नदी के तट पर स्थित है। यह एक कब्रिस्तान है जो एक पार्क भी है। यहां भगवान शिव की एक मूर्ति है जो आकार में बहुत बड़ी है।
“जब निको दिन आई है बनत न लगिहे देर” – हर बुरे दिन के बाद अच्छा दिन आता है। मुक्तिधाम इसका परम उदाहरण है। भौगोलिक दृष्टि से यह घाघरा वर्तमान सरयू नदी की गोद मे बसी है। यह स्थान श्रद्धालुओं का आकर्षण केन्द्र बना हुआ है तथा समय समय पर मेले लगते हैं। यह बाबा भोलेनाथ की परम पवित्र काशी नगरी की परिक्षेय मे आता है इसलिए इसको काशी क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। सरयू के दक्षिणी पूर्वी द्वार पर बसा यह नगर इसलिए भी धार्मिक दृष्टि से महत्वपुर्ण माना जाता है क्योंकि यहां दो किलोमीटर तक सरयू नदी उत्तर दिशा को बहती है। यहाँ बङे बङे महर्षि तपस्वी व संत वर्षों तक साधना किए हैं, ऐसे महात्माओं मे संत सिरोमणि, नागा बाबा, खाकी बाबा, मेला राम बाबा आदि। भगवान राम द्वारा स्थापित “गौरी शंकर” के भब्य मंदिर के नाते इस स्थान की चर्चा दूर-दूर तक है।
कैसे पहुंचें:
बाय एयर
वरनारसी एवं गोरखपुर एअरपोर्ट नजदीक है
ट्रेन द्वारा
मऊ से रेल मार्ग वाराणसी, गोरखपुर, छपरा, लखनऊ, नई दिल्ली, मुंबई आदि से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
सड़क के द्वारा
सडक मार्ग वाराणसी, गोरखपुर से 100 किमी दूर है . मुक्तिधाम की दुरी मऊ रेलवे स्टेशन से लगभग 45 किमी है .