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प्रदक्षिणा मन्त्र या परिक्रमा मन्त्र
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च ।
तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिण पदे पदे ।।
प्रदक्षिणा या परिक्रमा का एक ओर रूप
प्रदक्षिणा या परिक्रमा करते समय ध्यान रखें ये बाते
1. भगवान की मूर्ति और मंदिर की परिक्रमा हमेशा दाहिने हाथ से शुरू करना चाहिए। जिस दिशा में घड़ी के कांटे घूमते हैं, उसी प्रकार मंदिर में परिक्रमा करनी चाहिए।
2. मंदिर में स्थापित मूर्तियों सकारात्मक ऊर्जा होती है, जो कि उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित होती है। बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर इस सकारात्मक ऊर्जा से हमारे शरीर का टकराव होता है, जो कि अशुभ है। जाने-अनजाने की गई उल्टी परिक्रमा हमारे व्यक्तित्व को नुकसान पहुंचा सकती है। दाहिने का अर्थ दक्षिण भी होता है, इसी वजह से परिक्रमा को प्रदक्षिणा भी कहा जाता है।
किस देवता की कितनी प्रदक्षिणा या परिक्रमा करनी चाहिए?
श्री गणेशजी की प्रदक्षिणा या परिक्रमा
भगवान विष्णु की प्रदक्षिणा या परिक्रमा
माँ भगवती की प्रदक्षिणा या परिक्रमा
पवनपुत्र हनुमानजी की प्रदक्षिणा या परिक्रमा
सूर्य मंदिर की प्रदक्षिणा या परिक्रमा
भगवान शिव की प्रदक्षिणा या परिक्रमा
श्री कृष्ण की प्रदक्षिणा या परिक्रमा
भगवान श्री राम की प्रदक्षिणा या परिक्रमा
भैरव भगवान की प्रदक्षिणा या परिक्रमा
शनि भगवान की प्रदक्षिणा या परिक्रमा
पीपल के वृक्ष की प्रदक्षिणा या परिक्रमा
‘प्रगतं दक्षिणमिति प्रदक्षिणं’ अर्थात् अपने दक्षिण भाग की ओर गति करना प्रदक्षिणा कहलाता है. प्रदक्षिणा को ही साधारण शब्दों में हम परिक्रमा कहते हैं. परिक्रमा के दौरान व्यक्ति का दाहिना अंग देवताओं की ओर होता है. शब्दकल्पद्रुम के अनुसार देवता को उद्देश्य करके दक्षिणावर्त भ्रमण करना ही प्रदक्षिणा है.
परिक्रमा का महत्व
ज्योतिषाचार्या प्रज्ञा वशिष्ठ के मुताबिक परिक्रमा को शोडशोपचार पूजा का अभिन्न अंग माना गया है. लेकिन परिक्रमा करना कोई आडंबर या अंधविश्वास नहीं है, बल्कि विज्ञान सम्मत है. दरअसल विधि-विधान के साथ प्रतिष्ठित देव प्रतिमा के कुछ मीटर के दायरे में सकारात्मक ऊर्जा विद्यमान रहती है. परिक्रमा करने से वो ऊर्जा व्यक्ति के शरीर में पहुंचती है.
क्यों की जाती है दक्षिणावर्ती परिक्रमा
दक्षिणावर्ती परिक्रमा करने के पीछे का तथ्य ये है कि दैवीय शक्ति की आभा मंडल की गति जिसे हम सामान्य भाषा में सकारात्मक ऊर्जा कहते हैं, वो दक्षिणावर्ती होती है. यदि लोग इसके विपरीत दिशा में वामवर्ती परिक्रमा करेंगे तो उस सकारात्मक ऊर्जा का हमारे शरीर में मौजूद ऊर्जा के साथ टकराव पैदा होता है. इससे हमारा तेज नष्ट होता है. इसलिए वामवर्ती परिक्रमा को शास्त्रों में वर्जित माना गया है.
ऐसे शुरू हुआ था परिक्रमा का सिलसिला
वैसे तो किसी परिक्रमा का चलन तमाम धर्मो में है. लेकिन इसका प्राचीनतम उल्लेख गणेश जी की कथा में मिलता है. जब उन्होंने अपने माता-पिता के चारों ओर घूमकर सात बार परिक्रमा लगाई थी और इसी के बाद उन्हें प्रथम पूज्य कहा गया था.
शास्त्रों मेंं परिक्रमा के हैं विशेष नियम
नारद पुराण में सभी देवी-देवताओं की परिक्रमा को लेकर कुछ विशेष नियम हैं. नारद पुराण के मुताबिक शिव जी की आधी और मां दुर्गा की एक परिक्रमा करनी चाहिए. हनुमान और गणेश जी की तीन और विष्णु भगवान व सूर्य देव की चार परिक्रमा की जानी चाहिए. वहीं पीपल की 108 परिक्रमा का विधान है.
साष्टांग प्रणाम के साथ परिक्रमा करने का महत्व
कर्मलोचन नामक ग्रंथ के अनुसार जो व्यक्ति तीन प्रदक्षिणा साष्टांग प्रणाम करते हुए करते हैं, उन्हें दस अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है. जो सहस्त्र नाम का पाठ करते हुए परिक्रमा करते हैं, उन्हें सप्त द्वीप वटी पृथ्वी की परिक्रमा का पुण्य प्राप्त होता है.
परिक्रमा के नियम
परिक्रमा करते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना बहुत जरूरी है. परिक्रमा के दौरान मन को शुद्ध रखें और मन में प्रभु का नाम या किसी मंत्र का जाप करें. निंदा, क्रोध और तनाव आदि से दूर रहें. परिक्रमा हमेशा नंगे पैर ही करनी चाहिए. परिक्रमा के दौरान कुछ खाना-पीना नहीं चाहिए और न ही बातचीत करना चाहिए. परिक्रमा करते समय दैवीय शक्ति से याचना न करें. परिक्रमा के बाद साष्टांग प्रणाम जरूर करें.