।।#प्रसिद्ध_वकील।।

एक दिन उस वकील ने अपनी तर्कशक्ति की लम्बी चौड़ी शेखी बघारनी शुरू कर दी।उसके साथ आया वकील भी उसकी हां में हां मिलाता जा रहा था तथा खुद को भी उसी श्रेणी में स्थापित करता जा रहा था।

दोनों की अंहता और वाचालता देकर मैने उनसे कहा कि देवीभागवत की कथानुसार एक गूंगा ब्राह्मण बालक था ।उसे जंगल में भटकते देखकर एक ऋषि ने कृपा करते हुए उससे पूछा- कुछ भी बोलने में समर्थ हो या नहीं?? उसके मुख से एं एं ही निकला।
ऋषि ने करुणा करते हुए कहा कि ठीक है, ठीक है ,यह भी देवी का बीज मंत्र है।इसे ही जपते रहो भगवती कृपा करेंगी।
भगवती की कृपा से युवक धुरंधर विद्वान तथा कुशल वक्ता होकर उसी अरण्य में तपोरत हो गया।
एक दिन बाण लगा सूकर उसके आगे से निकलकर पास में छिप गया।
तभी शिकारी वहां आया और तपोरत युवक से सूकर के बारे में पूछा।
तपस्वी ने सोचा सूकर का पता बताऊँ तो जीवहत्या का दोष होगा, शिकारी को गुमराह करूँ तो इसका परिश्रम व्यर्थ करने का दोष लगेगा। बड़ा धर्म संकट है।

मैनें उन वकीलों से पूछा कि इस मामले में उस तपस्वी को क्या करना चाहिए??

दोनों एक दूसरे को ताकने लगे….
बाद में मेरी ओर ही उत्तरापेक्षी दृष्टि से देखने लगे।

मैने कहा कि संसार का सबसे पहला अधिवक्ता तो भगवान् शिव हैं — अध्यवोचदधिवक्ता…

उसकी कृपा से ही सब ज्ञान सहजता से हो जाता है।

उस तपस्वी ने कहा कि जिसने देखा है वे बोल नहीं सकती ।और जो बोल सकती है उसने देखा ही नहीं।

अर्थात् आंखों ने देखा है पर ये बोल नहीं सकती।और जिह्वा क्या बोले उसने देखा ही नहीं।

इस उत्तर को सुनकर शिकारी तपस्वी को फक्कड़ समझकर आगे बढ़ गया।

और वे वकील संस्कृत के गहन ज्ञान के आगे नतमस्तक हो गये।

अतः समझ जाइये कि विवेकी विद्वान सब तर्कशास्त्र से परे है।
उसकी मेधाशक्ति अप्रतीम हो जाती है।

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