वैदिक हिलींग उपचार ध्यान प्रक्रिया

रात के समय या फिर ब्रम्हमुहूर्त में जब बाताबरण शान्त हो तब एक आसान पे बैठ जाएं या फिर सीधे लेट जाएं (सवासन) । अपने शरीर को पूरा हल्का छोड़ दें और ढीला कर दें । इस दौरान हल्का भोजन करें ज्यादा भारी भोजन करने के बाद ये क्रिया करने से उल्टी आ सकती है ।

अब अपनी स्वास की गति पे ध्यान करें कि स्वांस कैसे अंदर जा रही है और फिर बाहर निकल रही है । इस दौरान महसूस करें कि अपने नाक के जरिये स्वांस अंदर जा कर फेडों तक पहुंच रही है और फिर फेपडों से होकर नाक के माध्यम से बाहर निकल रही है ।

ध्यान रखें कोई भी मंत्र का जाप नही करना है इस दौरान । शिर्फ़ स्वांस की गति पे ध्यान केंद्रित करे और सब कुछ भुल जाएं कोई चिंता नही कोई तनाब नही ।

इस दौरान आप महसूश करोगे की स्वांस की गति धीमी हो रही है और लंबा चल रहा है यानी कि गहरा स्वांस लेना और छोड़ना अपने आप होगा बिना किसी दवाब के । ये अपने आप होगा शारीरिक प्रक्रिया ।

अब इसी के ऊपर ध्यान करते रहें धीरे धीरे आपको अपने दिल की धड़कन सुनाई देगी अपने कानों में । इसको सुनते रहें 5 से 10 मिनट तक । जब साफ साफ सुनाई देने लगे तो एक धड़कन के साथ ये महशुस करें कि दिल से नमः शिवाय की धुन निकल रही है होठों से नही मुँह होठ जुबान सब कुछ अपने जगह शांत होगा कोई हलचल नही होगी ये सब में ।

हर धड़कन के साथ नमः शिवाय की आवाज़ निकलेगी । समय के साथ आपको दिल की धड़कन की जगह शिर्फ़ और शिर्फ़ यही सुनाई देगा ।

इस बात पे गौर करें कि ये नमः शिवाय की धुन अपनी दिल की आवाज़ है ।

यही है ध्यान और समाधि । इसके दौरान नींद भी लग सकती है तो कोई दिक्कत नही, सोजाएं । ये क्रिया ज्यादातर रात में bed पर करना सही रहता है ।

जब आप लोग ये क्रिया करोगे तो एक हफ्ते के अंदर बहत कुछ बदलाब होने लगेगा । काफी सारे सपने आने शुरू हो जाएंगे । और इसके साथ आप एक साधक की श्रेणी से उठ कर ये योगी के श्रेणी में प्रवेश कर जायेगें ।

योगीक जीवन का सफ़र शुरू हो जाएगा । अपने अंदर शिव तत्व घटित होने लगेगा और दिन भर एक अद्भुत ऊर्जा की महसूश होगी ।

जैसे जैसे अभ्यास बढ़ती जाएगी फिर अपने अंदर की चक्रों का दर्शन भी होना चालू हो जाएगा । और इसके साथ अपने अंदर शिव का निराकार स्वरूप ( एक काफी ऊर्जा बान ज्योति के दर्शन भी होंगे ये आपकी आत्मा है या फिर आत्म ज्योति कहें ) ये सारी उन्ही की कृपा है बाबा नीलकंठ चन्द्रचूड़ की महिमा है ।

ये क्रिया ज्यादा मात्रा में करने से साधक को ये महसूश होगा जैसे कि वो हर पल एक नशे में हो और ये नशा उसके चेहरे से साफ झलकेगी । यही है शिव तत्व की नशा और शिव की नशा । लेकिन ध्यान रखें जितना जितना आप शिव की और अग्रसर होते जाएंगे
उतना ही वैराग्य की भावना अघोर की में बहते जाएंगे वैराग्य क्या है अघोर क्या है इसका आभास आप महसूस करेंगे

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