बजरंग बाण

दोहा
निश्चय प्रेम प्रतीत ते, विनय करें सनमान ॥
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान ॥

चौपाई
जय हनुमंत संत हितकारी ॥ सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ॥1॥

जन के काज विलम्ब न कीजै ॥ आतुर दौरि महा सुख दीजै ॥2॥

जैसे कूदि सुन्धु वहि पारा ॥ सुरसा बद पैठि विस्तारा ॥3॥

आगे जाई लंकिनी रोका ॥ मारेहु लात गई सुर लोका ॥4॥

जाय विभीषण को सुख दीन्हा ॥ सीता निरखि परम पद लीन्हा ॥5॥

बाग उजारी सिंधु महं बोरा ॥ अति आतुर जमकातर तोरा ॥6॥

अक्षय कुमार मारि संहारा ॥ लूम लपेट लंक को जारा ॥7॥

लाह समान लंक जरि गई ॥ जय जय धुनि सुरपुर में भई ॥8॥

अब विलम्ब केहि कारण स्वामी ॥ कृपा करहु उन अन्तर्यामी ॥9॥

जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता ॥ आतुर होय दुख हरहु निपाता ॥10॥

जै गिरिधर जै जै सुखसागर ॥ सुर समूह समरथ भटनागर ॥11॥

जय हनु हनु हनुमंत हठीले ॥ बैरिहि मारु बज्र की कीले ॥12॥

गदा बज्र लै बैरिहिं मारो ॥ महाराज प्रभु दास उबारो ॥13॥

ॐ कार हुंकार महाप्रभु धावो ॥ बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो ॥14॥

ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा ॥ ॐ हुं हुं हनु अरि उर शीशा ॥15॥

सत्य होहु हरि शपथ पाय के ॥ रामदूत धरु मारु जाय के ॥16॥

जय जय जय हनुमंत अगाधा ॥ दुःख पावत जन केहि अपराधा ॥17॥

पूजा जप तप नेम अचारा ॥ नहिं जानत हौं दास तुम्हारा ॥18॥

वन उपवन, मग गिरि गृह माहीं ॥ तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ॥19॥

पांय परों कर जोरि मनावौं ॥ यहि अवसर अब केहि गोहरावौं ॥20॥

जय अंजनि कुमार बलवन्ता ॥ शंकर सुवन वीर हनुमंता ॥21॥

बदन कराल काल कुल घालक ॥ राम सहाय सदा प्रति पालक ॥22॥

भूत प्रेत पिशाच निशाचर ॥ अग्नि बेताल काल मारी मर ॥23॥

इन्हें मारु तोहिं शपथ राम की ॥ राखु नाथ मरजाद नाम की ॥24॥

जनकसुता हरि दास कहावौ ॥ ताकी शपथ विलम्ब न लावो ॥25॥

जय जय जय धुनि होत अकाशा ॥ सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा ॥26॥

चरण शरण कर जोरि मनावौ ॥ यहि अवसर अब केहि गौहरावौं ॥27॥

उठु उठु उठु चलु राम दुहाई ॥ पांय परों कर ज़ोरि मनाई ॥28॥

ॐ चं चं चं चं चपल चलंता ॥ ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता ॥29॥

ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल ॥ ॐ सं सं सहमि पराने खल दल ॥30॥

अपने जन को तुरत उबारो ॥ सुमिरत होय आनन्द हमारो ॥31॥

यह बजरंग बाण जेहि मारै ॥ ताहि कहो फिर कौन उबारै ॥32॥

पाठ करै बजरंग बाण की ॥ हनुमत रक्षा करैं प्राण की ॥33॥

यह बजरंग बाण जो जापै ॥ ताते भूत प्रेत सब कांपै ॥34॥

धूप देय अरु जपै हमेशा ॥ ताके तन नहिं रहै कलेशा ॥35॥

दोहा
प्रेम प्रतीतहि कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान ॥
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान ॥

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