वैदिक हिलींग का महत्त्व एवं उपयोग

वैदिक हिलींग बहुत सौम्य ऊर्जा होने के साथ-साथ बहुत प्रभावी होती है। इसके उपयोग के लंबे इतिहास में यह हृदय रोग, कैंसर, अस्थि भंग, अनिद्रा, थकान, सिरदर्द, चर्म रोग, डिप्रेशन इत्यादि में प्रभावी सिद्ध हुई है। यदि उपचार की अन्य विधियों के साथ में इसका उपयोग किया जाता है तो यह उनके प्रभावों को बढ़ाती है व रोगी अपेक्षाकृत कम समय में ठीक हो सकता है।

वैदिक हिलींग का मूल्य

  1. इससे नुकसान कुछ नहीं होता, परन्तु यह फायदा बहुत करती है।
  2. यह एक क्षण में उत्पन्न होती है और इसकी स्मृति सदा के लिए बनी रहती है।
  3. कोई मनुष्य इनता धनी नहीं है कि जिसका इसके सिवाय निर्वाह हो सके, और न कोई इतना दरिद्र है कि जो इसके लाभों से धनी न हो सके ।
  4. यह विचारों में शुद्धता व विश्वास लाती है, परिवार में सुख व हौसला बढ़ाती है, व्यापार में हिम्मत व ख्याति प्रदान करती है, व्यवहार में कुशलता व समर्थन पैदा करती है।
  5. यह थके हुए व्यक्ति के लिए विश्राम है, हतोत्साह के लिए दिन का प्रकाश है, ठिठुरे हुए के लिए धूप है, कष्ट के लिए प्रकृति का सर्वोत्तम प्रतिकार है। स्वास्थ्य के लिए कायाकल्प का वरदान है।
  6. जब तक यह न ली जाए तब तक संसार में यह किसी के काम की नहीं।

वैदिक हिलींग कैसे सीखी जाती है?

वैदिक हिलींग की सबसे बड़ी विशेषता है इसकी सरल चिकित्सा। इसलिए कोई भी व्यक्ति इसे सीख सकता है। इसमें उम्र, शिक्षा, साधना, आसन आदि का कोई बंधन नहीं है। इसे सीखने के लिए केवल इच्छा, विश्वास एवं श्रद्धा की आवश्यकता है।

यह विद्या 1 दिन के सेमिनार में सिखाई जाती है, जिसमें करीब 8 से 10 घंटे का समय लगता है। इस सेमिनार में ‘हिलींग मास्टर’ (प्रशिक्षक) द्वारा व्यक्ति को ‘सुसंगतता’ प्रदान की जाती है, जिसे ‘एट्यूनमेंट’ या ‘इनिसियेशन’ या ‘शक्तिपात’ भी कहा जाता है, जिससे व्यक्ति के शरीर में स्थित ‘शक्ति केंद्र’ जिन्हें हम ‘चक्र’ कहते है, खुलकर गतिमान हो जाते हैं, जिससे उनमें ‘जीनव शक्ति’ का संचार होने लगता है।

इसके बाद यह शक्ति जीवनपर्यंत तथा हर समय व्यक्ति के पास रहती है। इससे वह स्वयं का और दूसरों का उपचार कर सकता है। इस शक्ति को और अधिक विकसित कर समय एवं दूरी से ऊपर उठकर उचार करने की शक्ति प्राप्त होती है

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