आसन सिद्ध करने के लिए

अनुष्ठान शुरू कर रहे हो तो पहले आसन सिद्ध करें स्थापना करें । पूर्व दिशा की ओर मुंह करके आसन पर बैठें । चावल के दाने ( अक्षत ) हल्दी से पीले कर दें । अग्नि कोण (पूर्व और दक्षिण के बीच का ) में आसन के नीचे कोने पर वो दाने रख दिए और ‘ ॐ गं गणेशाय नमः ‘ मेरा आसन और अनुष्ठान सिद्ध हो …मेरे जप ध्यान में कोई विघ्न न आए। फिर नेर्रित्त्य कोण ( दक्षिण और पश्चिम के बीच का कोण ) के आसन के कोने के नीचे दाने रख दिए और प्रार्थना करें ‘ ॐ एं सरस्वत्यै नमः ‘ …हें सरस्वती मुझे सद्बुद्धि देना… मेरे अनुष्ठान में मैं ही अड़चन न बनूँ …मैं उपवास न तोडूं …. मेरी बुद्धि बनी रहे । फिर वायव्य कोण ( पश्चिम और उत्तर के बीच का कोण ) के आसन के कोने के नीचे चावल के दाने रखे और ‘ ॐ दुं दुर्गाय नमः ‘ हें माँ दुर्गा … काम , क्रोध , लोभ, मोह, मद, मत्सर, आदि अगर मेरे जप अनुष्ठान में अड़चन बनें तो मेरे ये दुर्गुणों को भी तू दूर करना । फिर ईशान कोण ( उत्तर और पूर्व के बीच का कोण ) के कोने के नीचे दाने रख दिए और ‘ श्याम क्षेत्रपालय नमः ‘ जपे

शिव ॐ

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